माँ बगलामुखी मंदिरम की स्थापना ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’’ अर्थात् सभी सुखी हों ऐसी धारणा के साथ किया गया है। सम्पूर्ण जगत् जिस परम शक्ति से आच्छादित है,संचालित है, आध्यात्मिक साधनाओं के माध्यम से उसको सब लोग जानें,आभास करें जिससे कि समस्त मानव प्राणी स्वस्थ-तन,प्रसन्न-मन और सम्पन्न-धन वाले होकर आनन्दमय जीवन बिताते हुए आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर सकें। तन्त्र साधनाएं साधक को तत्काल मनचाहा फल प्रदान करती हैं,परन्तु आदिकाल से इन विद्याओं,साधनाओंको अत्यन्त गोपनीय रखा गया है जिससे कि इनका दुरुपयोग न हो। साधनासम्बन्धी अनेक जटिलताएं भी होती हैं जिनका निवारण योग्य गुरू के बिना सम्भव नही है। कालातिक्रमण के कारण लुप्तप्राय सी हो रही इन परम शक्तिशाली विद्याओं को पूज्य श्री गुरू जी ने तन्त्र-मन्त्र और योग की कठोर साधनाओं से प्रत्यक्ष प्रकट किया और सबको सुगमता से सुलभ हो सकें इस उद्देश्य से माँ बगलामुखी मंदिरम की स्थापना की। पूज्यपाद सर्वतन्त्रसर्वग्य निगमागमतंत्रपरिणः परिव्राजकाचार्य जगतगुरु श्री योगिनी पीठाधीश्वर अनन्त श्री विभूषित ब्रह्मर्षि योगिराज शिवस्वरूप परमहंस स्वामी श्री शिव कुमार जी महाराज से शाक्त मत के अनुसार दीक्षा और मार्ग-दर्शन प्राप्तकर माँ बगलामुखी मंदिरम के साधक गण काली, तारा,षोडशी( श्री विद्या महा त्रिपुर-सुन्दरी ) भुवनेश्वरी,भैरवी,छिन्नमस्ता,धूमावती,बगलामुखी,मातंगी और कमला सहित सभी महाविद्याओं, भगवती-प्रत्यंगिरा, भगवान् नृसिंह आदि की सांगोपांग साधनाएं सुगमता पूर्वक करके सफलता प्राप्त करते हैं।
माँ बगलामुखी मंदिरम‘‘वसुधैव- कुटुम्बकम्’’ की भावना के साथ जाति,वर्ग,वर्ण,देश,सम्प्रदायादि के भेदभावके बिना समस्त प्राणी मात्र के हित के लिएनिरन्तर कार्य-रत है। पूज्यपाद सर्वतन्त्रसर्वग्य निगमागमतंत्रपरिणः परिव्राजकाचार्य जगतगुरु श्री योगिनी पीठाधीश्वर अनन्त श्री विभूषित ब्रह्मर्षि योगिराज शिवस्वरूप परमहंस स्वामी श्री शिव कुमार जी महाराज से शाक्त मत के अनुसार दीक्षा और मार्ग-दर्शन प्राप्तकर माँ बगलामुखी मंदिरम के साधक गण काली, तारा,षोडशी( श्री विद्या महा त्रिपुर-सुन्दरी ) भुवनेश्वरी,भैरवी,छिन्नमस्ता,धूमावती,बगलामुखी,मातंगी और कमला सहित सभी महाविद्याओं, भगवती-प्रत्यंगिरा, भगवान् नृसिंह आदि की सांगोपांग साधनाएं सुगमता पूर्वक करके सफलता प्राप्त करते हैं। माँ बगलामुखी मंदिरम‘‘वसुधैव- कुटुम्बकम्’’ की भावना के साथ जाति,वर्ग,वर्ण,देश,सम्प्रदायादि के भेदभावके बिना समस्त प्राणी मात्र के हित के लिएनिरन्तर कार्य-रत है।
संसार में फैली अशान्ति ,अनाचार आदि प्रकृति के असन्तुलन का परिणाम है जिससे मानव प्राणी-मात्र ही नहीं वरन् पशु-पक्षी,जीव-जन्तु,वनस्पतियाँ सब अशान्त हैं।प्रकृति में सम्यक् रूप से आध्यात्मिक-ऊर्जा के संचार के बिना इन समस्याओं से मुक्ति पाना असम्भव है। यज्ञ से विश्व पर्यावरण तथा आध्यात्मिक साधनाओं के माध्यम से मानवीय चेतना निर्मल होगी। जिससे जन-मानस सदैव गुणी होकर सुख-शान्ति प्राप्त कर सकेगा । एतदर्थ पूज्य गुरुदेव सामाजिक विकृतियों जैसे -कन्या भ्रूण हत्या रोकने,भ्रष्टाचार, आतंकवाद तथा धार्मिक-उन्माद के समूल विनाश हेतु महायज्ञ और जन-जागरण का महत्कार्य करते हैं।